महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण

 सत्य तुम, स्वप्न तुम, तुम निराशा-आशा
अजित-जित, तृप्ति तुम, तुम अतृप्ति-पिपासा,
आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,
अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की परिभाषा।| 

        राजनीति का सुनहरा आकाश हो या बिजनेस का चमकीला गगन, अंतरिक्ष का वैज्ञानिक सफर हो या खेत-खलिहान का हरा-भरा आँगन, हर जगह आज की नारी अपनी चमक बिखेर रही है, अपनी सफलता का परचम लहरा रही है| आज घर की दहलीज को पार कर बाहर निकल अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने वाली महिलाओं की संख्या में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है|

        हम आज इक्कीसवीं सदी में जीते हुए जिस नारी को आगे बढ़ते हुए देखते हैं, पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर चलते हुए देखते हैं, उसकी पूर्व भूमिका भारत में आर्य  काल में समाज की स्थापनाकाल में ही देखी जा सकती  है। आज हमारी दृष्टि जिस प्रकार देश, समाज  और विश्व विकास में उनकी बढ़ती सहभागिता पर गर्व करना चाहती हैं| उनके महत्व को स्वीकार कर उन्हें सशक्ति के मार्ग पर देखना चाहती है , वस्तुतः यह युग के साथ चिन्तन  में आता  हुआ बदलाव किंचित हो सकता है पर यह ऊपर से थोपा हुआ वैश्विक चिंतन नहीं इसकी जड़ें हमारे अपने प्राचीन समाज में ही देखी जा सकती हैं|

मानवता की प्रगति महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना अधूरी है। आज मुद्दा महिलाओं के विकास का नहीं, बल्कि महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का है।”

      जिस प्रकार स्रष्टि शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है, उसी प्रकार नारी कोई एक शब्द  नही बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति का अर्थ समाहित किए हुए है| नारी को कभी किसी की दया, उपकार, एहसान की आवश्यकता ही नही है| वह तो स्वयं में ही स्वभावतः धैर्यवान, सहनशील, भक्तिभावपूर्ण है।

महिला सशिक्तकरण- 2001 के लिए राष्ट्रीय नीति

महिलाओं के अधिकारों और कानूनी हकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सन् 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गयी।

पंचायतों और नगर निगमों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए सन् 1993 में 73 वां और 74 वां संविधान संशोधन किया गया।

     विद्यालयीस्तर पर शिक्षा की बात की जाए तो आज भी हमें अंतर नज़र आता है| छात्रों के मुकाबले छात्राएँ कम विद्यालय में प्रवेश प्राप्त करती हैं| सर्वे के अनुसार 70 छात्र व 30 छात्राओं का आकड़ा हमें कक्षाओं में नज़र आता है| पहले के मुकाबले शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाओं के प्रवेश में बढ़ोत्तरी तो हुई है लेकिन अभी भी हम सबका प्रयास इसे और ऊपर बढ़ाने का होना चाहिए| जिससे देश में ऐसी कोई नारी न हो जो आत्मनिर्भर न हो| हम सबका प्रयास ही देश को विकासशील देश बनाएगा जिसके लिए पहला कदम हम सबको मिलकर उठाना होगा कि हम बालिकाओं को समान अधिकार दें व साथ ही उन्हें विद्यालयी शिक्षा से वंचित न कराए|

   पुरूषों की भाँति महिलाएँ भी देश की समान नागरिक हैं और उन्हें भी स्वावलम्बी होना चाहिए ताकि समय आने पर वह व्यवसाय कर सकें और अपने परिवार को चलाने में मदद कर सकें। यही जागरूकता ही तो उनके, उनके परिवार के व देश के विकास को गति देगी एवं एक नई दिशा देगी। एक खुशहाल भविष्य की कामना करते हुए इस बात का संकल्प कीजिए| मैं अपने हुनर को पहचानूँगी और स्वावलम्बी बनकर दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनूँगी, मैं खुद एक आत्मनिर्भर नारी हूँ जो कि घर और ऑफिस दोनों को सम्भालती हूँ। ना मैं डॉक्टर हूँ, ना मैं वकील और ना ही राजनेता, पर हाँ मैं शिक्षित हूँ और एक अध्यापिका हूँ और इस बात से खुश हूँ कि मैं आत्मनिर्भर हूँ।

मोनिका कुमारी गुप्ता

हिंदी अध्यापिका

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *